हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने कहा कि यह अत्यंत खेदजनक है कि कुछ मुस्लिम देशों का रवैया अप्रत्यक्ष रूप से ज़ायोनी आक्रामकता को मज़बूती दे रहा है। उन्होंने विशेष रूप से मिस्र और ज़ायोनी शासन के बीच 35 अरब डॉलर के गैस समझौते का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे क़दम वास्तव में ज़ायोनी युद्ध मशीन को फिर से शक्ति देने के समान हैं, ताकि वह और अधिक मुसलमानों का ख़ून बहा सके। उन्होंने बताया कि स्वयं मिस्र के कुछ राजनीतिक हलकों ने भी इस समझौते को शर्मनाक क़रार दिया है।
इमाम-ए-जुमाअ क़ुम ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव 2231 से जुड़ी हालिया प्रगति का ज़िक्र करते हुए कहा कि अमेरिका और तीन यूरोपीय देशों ने एक बार फिर इस प्रस्ताव को आधार बनाकर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन चीन और रूस सहित कुछ देशों के रुख़ के कारण दुश्मन अपने उद्देश्यों में असफल रहा हैं क्योंकि इस प्रस्ताव की अवधि पूरी हो चुकी है।
उन्होंने अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि वॉशिंगटन वेनेज़ुएला की वैध सरकार पर लगातार दबाव बढ़ा रहा है, यहां तक कि अमेरिकी युद्धपोतों की मौजूदगी के ज़रिये घेराबंदी को सख़्त किया जा रहा है। हालांकि, वेनेज़ुएला की जनता एकता और दृढ़ता के साथ इस ज़ुल्म का मुक़ाबला कर रही है।
उनका कहना था कि इतिहास गवाह है कि अंततः विजय मज़लूमों और प्रतिरोध करने वाली क़ौमों की ही होती है।
आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने ज़ोर देकर कहा कि आज दुनिया को फ़िलिस्तीन, ग़ज़्ज़ा और अन्य मज़लूम क़ौमों के साथ वास्तविक एकजुटता दिखाने की ज़रूरत है, क्योंकि ख़ामोशी और अवसरवादिता दरअसल ज़ुल्म को बढ़ावा देने का कारण बनती है।
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